रविवार, 31 मार्च 2019

'रचनाकार.ऑर्ग' लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत मार्टिन जॉन की लघुकथा --'डिजिटल स्लेव'

एक मेट्रो सिटी में अच्छे पैकेज पर जॉब करने वाले बेटे को पाप ने इत्तलाय "हम अगले महीने आ रहे हैं बेटा तुम्हारे पास ।....रिजर्वेशन ऑफिस जा रहा हूं टिकट बुक करवाने ।"
"ठीक है आइए ।....लेकिन रिजर्वेशन ऑफिस जाने की क्या ज़रूरत है पापा । मैं ई- टिकट बुक कर देता हूं । आप जर्नी प्रोग्राम बताइए । टिकट निकाल कर आपके मोबाइल में फॉरवर्ड कर दूंगा ।"
पापा रिजर्वेशन ऑफिस के सेवानिवृत्त कर्मी थे । टिकट बनवाने के बहाने कार्यरत सहकर्मियों से भेंट-मुलाकात करने की उनकी दिली इच्छा थी । बेटे की इस प्लानिंग से अभी के लिए उनकी इच्छा धरी रह गई ।
जर्नी प्रोग्राम के मुताबिक नियत समय पर वे मेट्रो सिटी पहुंच गए । बेटा आया था स्टेशन मम्मी-पापा की रिसीव करने । बेटे ने तुरंत कैब बुक किया और घंटे भर में वे पहुंच गए अपार्टमेंट । उस अपार्टमेंट की पांचवीं मंजिल पर बेटे ने फ्लैट ले रखा था ।
लिफ्ट के ज़रिए फ्लैट पहुंचकर फ्रेश होने के बाद पापा को चाय की सख़्त तलब महसूस हुई । उन्होंने अम्मी की ओर देखा । मम्मी समझ गई । फौरन किचन में दाख़िल हो गई । चारों ओर नज़र घुमाकर जब उन्होंने देखा तो पाया कि गैस सिलिंडर , ओवेन और दो-चार बर्तनों के अलावा वहां कुछ नहीं है ।
"क्या खोज रही हो अम्मी ?"
"बेटा , पापा को इस वक़्त चाय पीने की आदत है न ! लेकिन यहां तो कुछ नहीं है ।"
बेटे ने तत्काल फ़ोन घुमाया । दस मिनट बाद डोरबेल बजी । तीन काम चाय हाज़िर ।
"लंच का क्या करेंगे बेटा ? घर में तो राशन-पानी है ही नहीं । बनाउंगी क्या ?"
" डोंट वरी मम्मी । अभी ऑर्डर कर देता हूं । "
घंटे भर के बाद लंच के पैकेट्स लेकर डिलीवर ब्वॉय दरवाज़े पर खड़ा हो गया ।
अगली सुबह पापा ने बेटे से कहा, " बेटा यहां कोई आस-पास बुक स्टॉल है क्या ?"
"क्यों ?"
"अख़बार ख़रीद कर ले आता । .....इसी बहाने थोड़ा मॉर्निंग वॉक भी हो जाता ।"
"इस अपार्टमेंट की छत बहुत बड़ी है , वहीं जाकर वॉक कर लीजिएगा । .....और ये लीजिए आज का न्यूज़ पेपर।" बेटे ने अपने लैपटॉप में ई-पेपर निकाल कर पापा के सामने रख दिया ।
"उसी समय मम्मी ने इच्छा जाहिर की , " बेटा , रेस्टोरेंट का खाना हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं रहेगा । चल न हमारे साथ बाज़ार । राशन , सब्जियां और कुछ बर्तन ले आते हैं । में रोज़ खाना बनाउंगी । "
"मार्केट जाने की क्या ज़रूरत है मम्मी । मार्केट को यहीं बुला लेते हैं ।"
उसने अपने स्मार्ट फ़ोन पर अंगुलियां फिरायीं । कुछ देर बाद सब्जियों और राशन के पैकेट्स लेकर डिलीवरी ब्वॉय सलाम ठोंककर मुस्करा रहा था । एक दूसरा डिलीवरी ब्वॉय किचन एप्लायंस दे गया ।
चार दिन हो गए । ऑनलाइन ज़िंदगी ने उन्हें फ्लैट के अंदर ही रहने को मजबूर कर दिया । उन्हें बेहद उकताहट सी महसूस होने लगी थी । खरीदारी के बहाने थोड़ा घूमने- फिरने की इच्छा लिए उस शाम मम्मी ने कहा , "चल न मार्केट , सोचती हूं बड़े भईया के बच्चों के लिए कुछ ड्रेसेस लेती आऊं ।"
बेटा फ़ौरन लैपटॉप लेकर मम्मी के पास बैठ गया और गार्मेंट का पूरा बाज़ार खोल दिया , " लो मम्मी , देखो और पसंद कर लो । इमीडियट ऑर्डर कर देता हूं । दो-तीन दिनों के अंदर डिलीवरी हो जाएगी ।"
उस रात फ्लैट के एक कमरे में बेटा अपना मेल बॉक्स खंगालने में मसरूफ़ था । दूसरे कमरे में मम्मी और पापा बिस्तर पर पड़े-पड़े बगैर किसी संवाद के सफ़ेदी पुती छत के उस पार चांद- सितारों भरे खुले आसमान की कल्पना में खोए हुए थे । अचानक उन्हें लगा उनके ढलती उम्र के शरीर में नामालूम - सा कोई डिवाइस समाता जा रहा है । घबड़ाकर वे दोनों एक दूसरे की बाहों में समा गए ।
अगली सुबह ही तय प्रोग्राम के विपरीत वे दोनों रवानगी की तैयारी में लग गए ।

- मार्टिन जॉन

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