यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

लघुकथा संग्रह : लम्हे | आयोजक: प्राची डिजिटल पब्लिकेशन्स | सह-आयोजक: लघुकथा दुनिया


'लम्हे' लघुकथा संग्रह का उद्देश्य

‘लम्हें’ लघुकथा संग्रह के लिए आयोजित प्रतियोगिता का उद्देश्य लघुकथा लेखन के क्षेत्र में नये व पुराने साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना है। लघुकथा विधा के लेखकों को सम्मानित करने के साथ ही उनके साक्षात्कार को प्रकाशित कर दुनिया को लघुकथा लेखकों से परिचित कराना है। हमारा प्रयास लघुकथा विधाके उत्थान के लिए छोटा सा सहयोग है।


'लम्हे' लघुकथा संग्रह में शामिल होने के लिए नियम व शर्ते

✔ लम्हे’ लघुकथा संग्रह में प्रकाशन हेतु किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं है।

✔ लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए आयोजित प्रतियोगिता में कोई भी लेखक, ब्लॉगर व साहित्यकार प्रतिभाग कर सकता है।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए भेजी जानी वाली लघुकथा किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है। (एक प्रतिभागी अधिकतम 4 प्रविष्टियां भेज सकता है)।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए लघुकथा भेजने से पूर्व ध्यान दें कि उनकी भेजी गई रचना अन्य कहीं भी अर्थात किसी भी वेब पत्रिका या प्रिन्ट पत्रिका या समाचार पत्र में प्रकाशित न हो।

✔ हमारी संपादकीय टीम द्वारा संबधित लेखक व साहित्यकार द्वारा भेजी गई रचना अन्य कहीं भी प्रकाशित पाए जाने पर संपादकीय टीम उसे संग्रह में शामिल नहीं करेगी और न दुबारा उस लेखक पर विचार करेगी।

✔ निर्णायक मंडल द्वारा ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए प्राप्त किसी भी लेखक की निरस्त रचना पर पुनः विचार नहीं किया जायेगा और प्राची डिजिटल पब्लिकेशन किसी भी निर्णय के लिए स्वतंत्र होगा।

✔ लघुकथा सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित होनी चाहिए। इस सन्दर्भ में होने वाले किसी भी वाद-विवाद के लिए केवल लेखक जिम्मेवार होगा।

✔ ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह का प्रकाशन प्रतिभा खोज एवं लघुकथा लेखन प्रोत्साहन हेतु आयोजित स्पर्द्धा है, अत: प्राची डिजिटल पब्लिकेशन लेखक को रॉयल्टी देने के लिए बाध्य नहीं है।

✔ अंतिम तिथिः इंतज़ार करिए

कैसे प्रतिभाग करें

✔ सर्वप्रथम लेखक स्वयं को iBlogger में पंजीकृत करें।

✔ Dashboard पर लॉगइन कर New Post कंपोज करें और Category में Lamhe चयनित करें। यदि आप पोस्ट करते समय Lamhe कैटेगरी का चयन नहीं करते हैं, तो आपकी रचना पर कोई विचार नहीं किया जायेगा।




लेखक काे पुरस्कार स्वरूप मिलने वाले अन्य लाभ


  • ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह के लिए चुनी गई श्रेष्ठ लघुकथाओं को स्थान दिया जायेगा और चयनित लेखकों का साक्षात्कार वेब पोर्टल indiBooks.in में प्रकाशित किया जायेगा। यदि लेखक ब्लॉगर है, तो iBlogger में भी साक्षात्कार प्रकाशित किया जायेगा।
  • लम्हे’ लघुकथा संग्रह की ई-बुक सभी प्रतिभागियों को नि:शुल्क उपलब्ध करायी जायेगी। साथ ही देश-विदेश के सभी ई-बुक स्टोर पर पाठकों के लिए नि:शुल्क उपलब्ध कराई जायेगी। वहीं, ‘लम्हें’ लघुकथा संग्रह का पेपरबैक संस्करण भी प्रकाशित किया जायेगा, जिसे सम्मानित प्रतिभागियो को नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए प्राची डिजिटल पब्लिकेशन बाध्य नहीं है, लेकिन यदि लेखक पेपरबैक प्रतियां प्राप्त करना चाहते है, तो उन्हे 40% छूट पर उपलब्ध कराई जायेगी।
  • प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से लेखक व साहित्यकार को ‘लम्हे’ लघुकथा संग्रह में प्रतिभाग करने के लिए प्रमाण-पत्र प्रदान किया जायेगा।
  • लेखक यदि भविष्य में कोई भी पुस्तक प्रकाशित कराना चाहता है, तो प्राची डिजिटल पब्लिकेशन की ओर से उसे किसी भी प्रीमियम सेल्फ पब्लिशिंग योजना में 20 प्रतिशत की छूट प्रदान की जायेगी।

या

  • 100 पृष्ठों की कविता, कहानी या गज़ल की किताब मात्र 6,000/- रूपये देकर प्रकाशित करा सकता है। जिसमे लेखक को 20 लेखकीय प्रतियां, पुस्तक की डिजाइन, ISBN, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नेपडील पर पुस्तक की उपलब्धता एवं Unlimited Inventory Management की सुविधा दी जायेगी।


Source: https://www.iblogger.prachidigital.in/lamhe/

मंगलवार, 31 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: अदृश्य जीत | लेखन व वाचन डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी





लघुकथा: अदृश्य जीत | डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

जंगल के अंदर उस खुले स्थान पर जानवरों की भारी भीड़ जमा थी। जंगल के राजा शेर ने कई वर्षों बाद आज फिर खरगोश और कछुए की दौड़ का आयोजन किया था।




पिछली बार से कुछ अलग यह दौड़, जानवरों के झुण्ड के बीच में सौ मीटर की पगडंडी में ही संपन्न होनी थी। दोनों प्रतिभागी पगडंडी के एक सिरे पर खड़े हुए थे। दौड़ प्रारंभ होने से पहले कछुए ने खरगोश की तरफ देखा, खरगोश उसे देख कर ऐसे मुस्कुरा दिया, मानों कह रहा हो, "सौ मीटर की दौड़ में मैं सो जाऊँगा क्या?"


और कुछ ही क्षणों में दौड़ प्रारंभ हो गयी।

खरगोश एक ही फर्लांग में बहुत आगे निकल गया और कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण उससे बहुत पीछे रह गया।

लगभग पचास मीटर दौड़ने के बाद खरगोश रुक गया, और चुपचाप खड़ा हो गया।

कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ, खरगोश तक पहुंचा। खरगोश ने कोई हरकत नहीं की। कछुआ उससे आगे निकल कर सौ मीटर की पगडंडी को भी पार कर गया, लेकिन खरगोश वहीँ खड़ा रहा।

कछुए के जीतते ही चारों तरफ शोर मच गया, जंगल के जानवरों ने यह तो नहीं सोचा कि खरगोश क्यों खड़ा रह गया और वे सभी चिल्ला-चिल्ला कर कछुए को बधाई देने लगे।

कछुए ने पीछे मुड़ कर खरगोश की तरफ देखा, जो अभी भी पगडंडी के मध्य में ही खड़ा हुआ था। उसे देख खरगोश फिर मुस्कुरा दिया, वह सोच रहा था,
"यह कोई जीवन की दौड़ नहीं है, जिसमें जीतना ज़रूरी हो। खरगोश की वास्तविक गति कछुए के सामने बताई नहीं जाती।"

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी
-0-

रविवार, 29 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: क्या क्यूँ कैसे @ लघु कथा संग्रह | लेखन: अशोक भाटिया | वाचन: सृजनउत्सव



अशोक भाटिया करनाल से हैं। हिन्दी में एसोसिएट प्रोफेसर रह चुके हैं, आजकल लेखन और सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं। आपकी कविता, आलोचना, बाल साहित्य, व्यंग्य, लघु कथा जैसे विषयों पर 13 मौलिक और 15 संपादित पुस्तकें आ चुकी हैं। उनके लघुकथा संग्रह 'क्या क्यूँ कैसे' से लीजिए कुछ लघुकथाएँ सुनिए..


शनिवार, 28 मार्च 2020

लघुकथा वीडियो: पापिन। लेखिका: डिम्पल गौड़ । वाचन: डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी



सड़क किनारे रोज ही दिख जाती थी वह। फ़टे पुराने मैले कुचैले कपड़े। बुशर्ट और घाघरा। हाँ! बस यही तो पहनावा था उसका।
उलझे केश जिनमें बरसों से कभी कंघी न हुई।

उसके विचित्र हाव-भाव पागल घोषित करने के लिए काफी थे। कभी जोरों से हँसने लगती, कभी सिर पकड़ कर रोने लगती।
लोगों के मुँह से उसके बारे में यही सुनने को मिलता -"पगली है पगली! जाने कहाँ से आ गई यहाँ।" उसका खाने का तरीका भी होता एकदम जानवरों सरीखा!

कई बार मन में विचार आता इसे महिला सरंक्षण केंद्र पहुँचा दूँ। पति को उसके बारे में कहती। अक्सर यही जवाब मिलता "क्या यार ! एक तुम ही हो समाज सेविका यहाँ ! पुलिस वाले, समाज- सेवक सब उसे देख किस तरह इग्नोर करते हैं ! दुनिया में ऐसे हज़ारों मिल जाएँगे। आख़िर किसे-किसे सही जगह पहुँचाओगी तुम! " ये सब सुनकर बस चुप सी लगा जाती।

कई दिन बीत गए थे। अब पगली नज़र न आती। मन ही मन सोचती-चलो किसी भले मानस उसे महिला सरंक्षण केंद्र पहुँचा दिया होगा।

आज शाम चौराहे पर कुछ लोग इकठ्ठा थे। मुझे भी उत्सुकता हुई ! क्योंकि मैं भी ठहरी भीड़ का हिस्सा!

अचानक सामने कूड़े के ढेर के समीप ही वह पगली नज़र आई ! उसे देख हतप्रभ थी ! दिमाग सुन्न हो गया था।

संज्ञा शून्य खड़ी थी कि मेरे करीब खड़े महाशय की आवाज़ कानों से टकराई- "जाने किसका पाप लिए घूम रही है पापिन ! "

- डिम्पल गौड़, अहमदाबाद