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सोमवार, 12 नवंबर 2018

लघुकथा समाचार

देखत तौ छोटे लगें घाव करें गंभीर' जैसे दोहे से लघुकथा को आंका
Dainik Bhaskar: Nov 12, 2018, New Delhi 


विश्व मैत्री मंच द्वारा प्रकाशित लघुकथा संकलन 'सीप में समुद्र' किताब का लोकार्पण हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी के निदेशक उमेश कुमार सिंह थे। राष्ट्र भाषा प्रचार प्रसार समिति के संयोजक कैलाश चन्द्र पंत की अध्यक्षता में वरिष्ठ समीक्षक युगेश शर्मा और घनश्याम मैथिल ने पुस्तक पर विमर्श किया। इस अवसर पर संस्था की अध्यक्ष और संग्रह के संपादक संतोष श्रीवास्तव ने संपादन के अनुभव साझा किए।

दूसरे सत्र में हुआ गीत, गजल 

डॉ. उमेश कुमार सिंह ने लघुकथा पर अपना दृष्टिकोण रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कैलाशचंद पंत ने लघुकथा की विसंगतियों और साहित्यिक परिदृश्य में प्राचीन साहित्य और संस्कृति की चर्चा करते हुए सतसैया के दोहरे, अरु नावुक के तीरु, देखत तौ छोटे लगें घाव करें गंभीर जैसे लोकप्रिय दोहे से लघुकथा को आंका। दूसरे सत्र में गीत गजल संध्या का आयोजन हुआ, जिसमें शहर के नामचीन शायरों ने शिरकत की।

News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/bhopal/news/quotwatching-tau-tau-chong-chahta-chahra-chakte-sache-srilquot-such-as-judging-the-short-story-043059-3173314.html


रविवार, 11 नवंबर 2018

11 नवंबर 2018 दैनिक भास्कर के 'रसरंग' में एक लघुकथा

दैनिक भास्कर के 'रसरंग' में 11 नवंबर  2018 को मेरी एक लघुकथा का प्रकाशन। सुझावों का हार्दिक स्वागत। 
- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 



मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी


बोलती कहानियाँ: (रेडियो प्ले बैक इंडिया का ब्लॉग) में लघुकथा - एक गिलास पानी

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत रेडियो प्ले बैक इंडिया हमें कई कहानियाँ/लघुकथाएं  सुनवाते रहे हैं । लघुकथा "एक गिलास पानी" भी यहाँ  सुन सकते हैं। स्वर दिया है सुश्री पूजा अनिल ने। इसका कुल प्रसारण समय  3 मिनट 44 सेकण्ड है। यह निम्न लिंक पर उपलब्ध है। क्लिक करें और सुनें।

http://radioplaybackindia.blogspot.com/2018/10/Laghukatha-Chandresh-Kumar-Chhatlani.html

सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

अमृतसर रेल दुर्घटना विभीषिका पर 5 लघुकथाएं

(1). मेरा जिस्म

एक बड़ी रेल दुर्घटना में वह भी मारा गया था। पटरियों से उठा कर उसकी लाश को एक चादर में समेट दिया गया। पास ही रखे हाथ-पैरों के जोड़े को भी उसी चादर में डाल दिया गया। दो मिनट बाद लाश बोली, "ये मेरे हाथ-पैर नहीं हैं। पैर किसी और के - हाथ किसी और के हैं।
"तो क्या हुआ, तेरे साथ जल जाएंगे। लाश को क्या फर्क पड़ता है?" एक संवेदनहीन आवाज़ आई।
"वो तो ठीक हैलेकिन ये ज़रूर देख लेना कि मेरे हाथ-पैर किसी ऐसे के पास नहीं चले जाएँ, जिसे मेरी जाति से घिन आये और वे जले बगैर रह जाएँ।"
"मुंह चुप कर वरना..." उसके आगे उस आवाज़ को भी पता नहीं था कि क्या कहना है।


(2). ज़रूरत

उस रेल दुर्घटना में बहुत सारे लोग मर चुके थे, लेकिन उसमें ज़रा सी जान अभी भी बची थी। वह पटरियों पर तड़प रहा था कि एक आदमी दिखा। उसे देखकर वह पूरी ताकत लगा कर चिल्लाया, "बचाओ.... बsचाओ...."
आदमी उसके पास आया और पूछा, "तुम ज़िंदा हो?"
वह गहरी-गहरी साँसे लेने लगा।
"अरे! तो फिर मेरे किस काम के?"
कहकर उस आदमी ने अपने साथ आये कैमरामैन को इशारा किया और उसने कैमरा दूसरी तरफ घुमा दिया।

(3), मौका

एक समाज सेवा संस्था के मुखिया ने अपने मातहत को फ़ोन किया, "अभी तैयार हो जाओ, एक रेल दुर्घटना में बहुत लोग मारे गए हैं। वहां जाना है, एक घंटे में हम निकल जाएंगे।"
"लेकिन वह तो बहुत दूर है।" मातहत को भी दुर्घटना की जानकारी थी।
"फ्लाइट बुक करा दी है, अपना बैनर और विजिटिंग कार्ड्स साथ ले लेना।"
"लेकिन इतनी जल्दी और वो भी सिर्फ हम दोनों!" स्वर में आश्चर्य था।
"उफ्फ! कोई छोटा कांड हुआ है क्या? बैनर से हमें पब्लिसिटी मिलेगी और मेला चल रहा था। हमसे पहले जेवरात वगैरह दूसरे अनधिकृत लोग ले गये तो! समय कहाँ है हमारे पास?"

(4). संवेदनशील

मरने के बाद उसे वहां चार रूहें और मिलीं। उसने पूछा, "क्या तुम भी मेरे साथ रेल दुर्घटना में मारे गए थे?"
चारों ने ना कह दिया।
उसने पूछा "फिर कैसे मरे?"
एक ने कहा, "मैनें भीड़ से इसी दुर्घटना के बारे में पूछा कि ईश्वर के कार्यक्रम में लोग मरे हैं। तुम्हारे ईश्वर ने उन्हें क्यूँ नहीं बचाया, तो भीड़ ने जवाब में मुझे ही मार दिया।"
वह चुप रह गया।
दूसरे ने कहा, "मैंने पूछा रेल तो केंद्र सरकार के अंतर्गत है, उन्होंने कुछ क्यूँ नहीं किया? तो लोगों ने मेरी हत्या कर दी।"
वह आश्चर्यचकित था।
तीसरे ने कहा, "मैनें पूछा था राज्य सरकार तो दूसरे राजनीतिक दल की है, उसने ध्यान क्यूँ नहीं रखा? तब पता नहीं किसने मुझे मार दिया?"
उसने चौथे की तरफ देखा। वह चुपचाप सिर झुकाये खड़ा था।
उसने उसे झिंझोड़ कर लगभग चीखते हुए पूछा, “क्या तुम भी मेरे बारे में सोचे बिना ही मर गए?"
वह बिलखते हुए बोला, "नहीं-नहीं! लेकिन इनके झगड़ों के शोर से मेरा दिल बम सा फट गया।"

(5). और कितने

दुर्घटना के कुछ दिनों बाद देर रात वहां पटरियों पर एक आदमी अकेला बैठा सिसक रहा था।
वहीँ से रात का चौकीदार गुजर रहा था, उसे सिसकते देख चौकीदार ने अपनी साइकिल उसकी तरफ घुमाई और उसके पास जाकर सहानुभूतिपूर्वक पूछा, "क्यूँ भाई! कोई अपना था?"
उसने पहले ना में सिर हिलाया और फिर हाँ में।
चौकीदार ने अचंभित नज़रों से उसे देखा और हैरत भरी आवाज़ में पूछा, " भाई, कहना क्या चाह रहे हो?"
वह सिसकते हुए बोला, "थे तो सब मेरे अपने ही... लेकिन मुझे जलता देखने आते थे। मैं भी हर साल जल कर उन्हें ख़ुशी देता था।"
चौकीदार फिर हैरत में पड़ गया, उसने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "तुम रावण हो? लेकिन तुम्हारे तो एक ही सिर है!"
"कितने ही पुराने कलियुगी रावण इन मौतों का फायदा उठा रहे हैं और इस काण्ड के बाद कितने ही नए कलियुगी रावण पैदा भी हो गए। मेरे बाकी नौ सिर उनके आसपास कहीं रो रहे होंगे।"


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

लघुकथा समाचार

‘कम शब्दों में मानव मन को झकझोर देती है लघुकथा’
Swatva Samachar | October 15, 2018 | पटना 

आज के दौर में साहित्य की सबसे अच्छी विधा लघुकथा है। कम शब्दों में सारगर्भित रचना जो इंसानी मन को झकझोर दे वही लघुकथा है। उक्त बातें वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने साहित्यिक संस्था लेख्य-मंजूषा और अमन स्टूडियो के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित लघुकथा कार्यशाला में कही।

लघुकथा की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि बहुत लोग अंग्रेजी के सिनॉप्सिस को लघुकथा समझते हैं, तो कुछ लोग अंग्रेजी की शार्ट स्टोरी को लघुकथा समझते हैं। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। दोनों अलग-अलग भाषाएं हैं। लघुकथा अपने आप में एक पूरी विधा है।

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि प्रोफेसर अनिता राकेश ने कहा कि आज के युवा इस क्षेत्र में काफी अच्छा कर रहे हैं। लघुकथा के क्षेत्र में आज शोध के लिए बहुत सारी लिखित सामग्री उपलब्ध हैं।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार ध्रुव कुमार ने कार्यशाला में भाग ले रहे बच्चों को लघुकथा के शिल्प संरचना के पहलुओं से अवगत करवाया। लघुकथा के इतिहास के बारे में जानकारी दी।

लेख्य-मंजूषा की अध्य्क्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने लघुकथा के पितामह सतीशराज पुष्करणा के आलेख को बच्चों के लिए पढ़ा।

इस मौके पर हरियाणा से छपने वाली पुस्तक “लघुकथा कलश” का विमोचन भी किया गया। इस पुस्तक में बिहार के तमाम लघुकथाकारों की लघुकथा प्रकाशित है। मिर्ज़ा ग़ालिब टीचर ट्रेनिंग कॉलेज की छात्राओं ने लघुकथा से संबंधित अपने सवाल किए।

दूसरे-तीसरे सत्र में सभी प्रतिभागियों ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। वहीं अमन स्टूडियो और लेख्य-मंजूषा ने भविष्य में शार्ट फ़िल्म बनाने की बात कही। इस मौके पर भोजपुरी फ़िल्म ‘माई’ के स्क्रिप्ट राइटर  मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन शायर नसीम अख्तर ने किया।

News Source:
https://swatvasamachar.com/bihar-update/patna/kum-sabdo-mein-manav-man-ko-jhakjhor-deti-hai-laghukatha/

रविवार, 14 अक्तूबर 2018

सत्यव्रत (लघुकथा)

"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी
कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।

लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा दिखाई दिया। घबराहट में उसके दूसरे हाथ से लोटा छूट कर नीचे गिरा और पानी ज़मीन पर बिखर गया। आँखों से भी आंसू निकल कर उस पानी में जा गिरे। उसका हृदय फिर बोला, "इन आंसूओं की क्या कीमत? पानी में पानी गिरा, माँ के आंचल में तो आंसू नहीं गिरे।"

यह सुनते ही उसे कुछ याद आया, उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी और वहां रखी आरती की थाली लेकर दौड़ता हुआ वह बाहर चला गया। बाहर जाकर वह अपनी गाड़ी में बैठा और तेज़ गति से गाड़ी चलाते हुए ले गया। स्टीयरिंग संभालते उसके हाथ राक्षसों की भाँती ही थे। जैसे-तैसे वह एक जगह पहुंचा और गाडी रोक कर दौड़ते हुए अंदर चला गया। अंदर कुछ कमरों में झाँकने के बाद एक कमरे में उसे एक महिला बैठी दिखाई दी। बदहवास सा वह कमरे में घुसकर उस महिला के पैरों में गिर गया। फिर उसने आरती की थाली में रखा दीपक जला कर महिला की आरती उतारी और कहा, "माँ, घर चलो। आपको भोग लगाना है।"

वह महिला भी स्तब्ध थी, उसने झूठ भरी आवाज़ में कहा "लेकिन बेटे इस वृद्धाश्रम में कोई कमी नहीं।"

"लेकिन वहां तो… आपके बिना वह अनाथ-आश्रम है।" उसने दर्द भरे स्वर में कहा ।

और जैसे ही उसकी माँ ने हाँ में सिर हिला कर उसका हाथ पकड़ा, उसे अपने हाथ पहले की तरह दिखाई देने लगे।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी