गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

लघुकथा विधा पर हाइकु

स्वर्गीय श्री पारस दासोत ने  लघुकथा विधा पर हाइकु रच कर नए प्रयोग किए थे।  प्रस्तुत है उनके द्वारा कहे गए लघुकथा विधा पर कुछ हाइकु:


लघुकथा में,
है चली कथा, तार
शोर न मचा।
स्याही सोख है
है लघुकथा कथा
, बूँद डाल।
लघुकथा है,
है अपना पैमाना
लघुकथा में।

घटना डूबी
निकली लघुकथा
आइना बन। .

बूँद है कथा
तू ढूंढ ले सागर
है लघुकथा।

है लघुकथा,
तेरी मेरी उसकी
बात की कथा।


करती कथा
लघुकथा घर में
कथा संघर्ष।


पैसा नहीं है
है यह लघुकथा,
इसे न फैला।


निगाहें उठा,
आखों से खूँ बहाना
है लघुकथा।


लघु है कथा
फालतू न लिख तू
शब्द, अक्षर।

प्रयोग  तेरे
है लघुकथा तेरी
तेरी कहानी।

सोमवार, 24 दिसंबर 2018

मेरा सांता

रात गहरा गयी थी, हल्की सी आहट हुई, सुनते ही उसने आँखें खोल दीं, उसके कानों में माँ के कहे शब्द गूँज रहे थे,
"सफ़ेद कॉलर और कफ़ वाले लाल कोट के साथ चमड़े की काली बेल्ट और बूट पहने सफ़ेद दाढ़ी वाला सांता क्लॉज़ आकर तेरे लिये आज उपहार ज़रूर लायेगा।"

रात को सोते समय उसके द्वारा दवाई के लिए आनाकानी करने पर माँ के यह कहते ही उसकी नज़र अलमारी में टंगे अपने पिता के लाल कोट की तरफ चली गयी थी, जिसे माँ ने आज ही साफ़ किया था और उसने ठान लिया कि वह रात को सोएगी नहीं, उसे यह जानना था कि सांता क्लॉज़ उसके पिता ही हैं अथवा कोई और?

"अगर पापा होंगे तो पता चल जायेगा कि पापा सच बोलते हैं कि झूठ, उनके पास रूपये हैं कि नहीं?" यही सोचते-सोचते उसकी आँख लग गयी थी, लेकिन आहट होते ही नींद खुल गयी।

उसने देखा, उसके तकिये के पास कुछ खिलौने और एक केक रखा हुआ है। वह तब मुस्कुरा उठी, जब यह भी उसने देखा कि उसके पिता ही दबे क़दमों से कमरे से बाहर जा रहे थे, लेकिन जैसी उसे उम्मीद थी, उन्होंने सांता क्लॉज़ जैसे अपना लाल कोट नहीं पहना हुआ था।

सहसा उसकी नज़र खुली हुई अलमारी पर पड़ी, और  वह चौंक उठी, उसके पिता का लाल कोट तो उसमें भी नहीं था।

वास्तव में, लाल कोट अपना रूप बदलकर खिलौने और केक बन चुका था।


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

रविवार, 23 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

लघुकथा शोध केंद्र भोपाल मध्यप्रदेश की मासिक गोष्ठी। (22 दिसंबर 2018)
- श्रीमती कान्ता रॉय जी 

लघुकथा शोधकेन्द्र, भोपाल द्वारा लघुकथा गोष्ठी का आयोजन दिनांक 22 दिसंबर को मानस भवन में किया गया। कॉर्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डा देवेंद्र दीपक ने की।

मुख्य अतिथि: से.न. प्रो. डॉ. विनय राजाराम एवं मुख्य समीक्षक के रूप में श्री युगेश शर्मा मंचासीन रहे। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती शशि बंसल ने किया श्रीमती महिमा वर्मा द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुति पश्चात् कॉर्यक्रम का शुभारंभ हुआ। लघुकथा शोध केंद्र की अध्यक्षा श्रीमती कांता राय के स्वागत भाषण पश्चात् लघुकथा वाचन उषा सोनी, डॉ. मौसमी परिहार, नीना सोलंकी, शोभा शर्मा, विनोद जैन द्वारा किया गया जिनकी समीक्षा गोकुल सोनी, सुनीता प्रकाश, डॉ. वर्षा ढोबले, किरण खोड़के, मधुलिका सक्सेना, मृदुला त्यागी, रंजना शर्मा, सरिता बाघेला, कान्ता राय, एवम सतीश श्रीवास्तव ने की।

अपने विशेष उद्बोधन में डा देवेंद्र दीपक ने कहा की लघुकथा एक तुलसीदल के समान है जो अपने आकार में छोटी होते हुए विशेष संप्रेषण शीलता से युक्त होती है। डा विनय राजाराम ने कहा कि साहित्यकार कागज पर अपनी रचना उतारने के पूर्व अपने मन में पटकथा लिख चुका होता। अंत में श्री मुजफ्फर सिद्दीकी ने आभार व्यक्त किया।

Source:
https://www.facebook.com/kanta.roy.12/posts/2711892289035307

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

लघुकथा वीडियो

एक छोटे से चावल के दाने पर गायत्री मन्त्र लिखने का हुनर है लघुकथा
- श्री योगराज प्रभाकर

ओबीओ साहित्योत्सव देहरादून में श्री योगराज प्रभाकर जी लघुकथा संग्रह "गुल्लक" (लेखिका राजेश कुमारी जी) की समीक्षा करते हुए। 




मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

भगवान वैद्य ‘प्रखर’ और हरीश कुमार ’अमित’ को ममता कालिया ने प्रदान किया आर्य स्मृति साहित्य सम्मान
By Digital Live News Desk | Updated Date: Dec 17 2018


नयी दिल्ली : वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया ने 16 दिसंबर को हिंदी भवन में आयोजित सम्मान समारोह में 25वें आर्य स्मृति साहित्य सम्मान से भगवान वैद्य ‘प्रखर’ और हरीश कुमार ’अमित’ को उनकी लघुकथाओं के लिए सम्मानित किया. इस सम्मान में दोनों साहित्यकारों ग्यारह- ग्यारह हजार रुपए और उनकी पुस्तकों की पचास-पचास प्रतियां भी भेंट की गयीं. 

इस अवसर पर ममता कालिया ने कहा, लघुकथा एक रिलीफ का काम करती है. मैं पत्रिकाओं में सबसे पहले लघुकथा और कविता ही पढ़ती हूं. लेकिन लघुकथा को फिलर न बनाया जाये. किताबघर प्रकाशन ने अपने रजत जयंती वर्ष में इस विधा को समर्पित यह आयोजन कर एक बड़ा काम किया है. मुझे लगता है कि लघुकथा लिखते समय, किसी लोकोक्ति या सुनी हुई रचना की झलक न मिले. लघुकथा की शक्ति है उसकी तीक्ष्णता. उसमें अपूर्णता नहीं नजर आनी चहिए. लघुकथा कहानी की हाइकू है.

कार्यक्रम में सबसे पहले किताबघर के संस्थापक जगतराम आर्य को श्रद्धांजलि दी गयी. स्वागत भाषण में किताबघर प्रकाशन के निदेशक सत्यव्रत ने कहा कि प्रति वर्ष 16 दिसंबर को हम यह आयोजन किताबघर के संस्थापक जगतराम आर्य की स्मृति में करते हैं. हर बार एक नयी विधा पर प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. इसके विजेता को सम्मानित किया जाता है. इस बार लघुकथा की पांडुलिपियां आमंत्रित की गई थीं. इसके लिए हमारे निर्णायक मंडल के सदस्य थे असगर वजाहत, सुदर्शन वशिष्ठ और लक्ष्मीशंकर वाजपेयी. हमें खुशी है कि इस आयोजन में पांडुलिपियों की हाफ सेंचुरी पूरी हो गई. इनमें से दो आज पुस्तक रूप में लोकार्पित भी होंगी और उनके रचनाकार पुरस्कृत भी होंगे.

सम्मान अर्पण के बाद ‘लघुकथा की प्रासंगिकता’ पर एक परिसंवाद भी हुआ जिसकी शुरुआत की गोष्ठी के संचालक कथाकार महेश दर्पण ने. उन्होंने लघुकथा के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समय की चाल देखते हुए इस विधा का भविष्य उज्ज्वल है.

इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार प्रदीप पंत ने कहा, लघुकथा बहुत पहले से लिखी जा रही है. मैंने पहली लघुकथा पढ़ी थी यशपाल जी की ’मजहब’. कमलेश्वर जी ने इस विधा की शक्ति को पहचाना और लघुकथा पर दो- दो विशेषांक प्रकाशित किए. इस विधा में करुणा और गहरा व्यंग्य बड़ा काम करते हैं. किंतु लघुकथाकारों को चर्चित कहानियों के संक्षेपण से बचना चाहिए.

वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल का कहना था कि लघुकथा का काम है अपने समय की पहचान. किसी घटना को लघुकथा कैसे बनाया जा सकता है, यह बड़े कथाकरों से ही सीखा जा सकता है. उन्होंने सीरिया की एक लघुकथा की बानगी भी पेश की. याद दिलाया कि ’उल्लास’ के लिए पहले भी किताबघर प्रकाशन ने चैतन्य त्रिवेदी को सम्मानित किया था.

लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने कहा, अपने समय में मैंने लघुकथाएं नेशनल चैनल से नियमित प्रसारित कीं. वे खूब सुनी जाती थीं. मेरी पहली ही रचना 1975 में एक दैनिक में लघुकथा ‘के रूप में प्रकाशित हुई थी. कुछ लघुकथाएं कमलेश्वर जी ने सारिका में प्रकाशित की थीं. आज का जैसा वीभत्स और डरा देने वाला माहौल है, उसमें साहित्य ही दिशा दे सकता है. मूल्यों से भले ही सत्ता और राजनीति अलग हो जाएं, साहित्य कभी अलग नहीं होता. लघुकथा यह काम बड़ी शिद्दत से कर रही है. वाजपेयी जी ने दोनों पुरस्कार विजेताओं की लघुकथाओं के उदाहरण सामने रखकर कहा कि अच्छी रचनाएं हमेशा याद रहती हैं.
वहीं इस अवसर पर वरिष्ठ कथाकार सुदर्शन वशिष्ठ ने दोनों सम्मानित रचनाकारों को बधाई दी और कहा : एक समय तारिका के जरिए महाराज कृष्ण ने लघुकथा के लिए बड़ा योगदान किया. गुलेरी जी ने भी एक समय लघुकथाएं लिखी थीं. लघुकथा को उन्होंने सूक्ष्म, सूत्र रूप में काम करने वाली और बड़ी मारक विधा बताया. उनका कहना था कि लघुकथा लिखनेवाला बड़ा रचनाकार होता है. 

कार्यक्रम में सम्मानित लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ किया और लघुकथा की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला. ‘प्रखर’ जी ने कहा कि लेखक की मुट्ठी में समय का कोई टुकड़ा आ जाता है. वही उसे सृजन के लिए मजबूर करता है. मैं भी सारिका में प्रकाशित हुआ था. यह मेरा दूसरा लघुकथा संग्रह है. उन्होंने अपनी रचना ‘पेट’ का पाठ किया. हरीश कुमार ‘अमित’ ने किताबघर प्रकाशन का आभार ज्ञापित किया. बताया कि यह उनका पहला लघुकथा संग्रह है. मेरी यह प्रिय विधा है. इस विधा में अन्य विधाओं का प्रभाव भी आ रहा है. उन्होंने अपनी लघुकथा ‘अपने अपने संस्कार’ का पाठ किया.

समारोह में वरिष्ठ लेखक गंगाप्रसाद विमल, कथाकर विवेकानंद, कवि राजेंद्र उपध्याय, कथाकार हीरालाल नागर, नाटककार राजेश जैन, कवयित्री ममता किरण, कलाकार साजदा खान, हिमालयन रन एंड ट्रैक के संपादक चद्रशेखर पांडे, साहित्यकार अतुल प्रभाकर, लहरीराम सहित अनेक रचनाकार और साहित्यप्रेमी उपस्थित थे.

News Source:
https://www.prabhatkhabar.com/news/news/bhagwan-vaidya-prakhar-and-harish-kumar-amit-honors-arya-smriti-sahitya-samman/1233264.html

रविवार, 16 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

देवी नागरानी के दो जुड़ाव संग्रहों का विमोचन
“गंगा बहती रही” (लघुकथा संग्रह)

दिनांक १५ दिसम्बर २०१८, हैदराबाद में कवियित्री विनीता शर्मा जी के निवास स्थान पर देवी नागरानी के दो जुड़ाव संग्रहों का विमोचन डॉक्टर देवेंद्र शर्मा जी के हाथों सम्पन्न हुआ. डॉक्टर शर्मा ख़ुद एक दस्तावेज़ी साहित्यकार हैं, जिनका एक अंग्रेज़ी संग्रह (philosophy & theology-an intellectual odyssey) मुझे हासिल हुई है. इस संग्रह में अनेक धर्मों के बारे में विशेष ज्ञान पूरक तत्वों का ख़ुलासा हुआ है.

डॉक्टर देवेंद्र शर्मा जी के हाथों “माँ ने कहा था” “(काव्य) एवं “गंगा बहती रही” (लघुकथा संग्रह) का विमोचन हुआ. मौक़े पर हाज़िर साहित्यकार रहे श्रीमती विनीता शर्मा, जो ख़ुद एक बेहतरीन रचनाकार है, देवी नागरानी, मीरा बालानी, मोना हैदराबादी, सुनिता लूल्ला, ज्योति कनेटकर और पद्मज आयंगर . पद्मजा जी एक चर्चित साहित्यकार व Amraavati Poetic Prism 2018 की संपादिका है , व मोना जी एक जानी मानी ग़ज़लकारा. सुनिता जी भी ग़ज़ल की परिधि में आगे बढ़ रही हैं.

News Source:
https://ajmernama.com/national/306115/

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

मौकापरस्त मोहरे

वह तो रोज़ की तरह ही नींद से जागा था, लेकिन देखा कि उसके द्वारा रात में बिछाये गए शतरंज के सारे मोहरे सवेरे उजाला होते ही अपने आप चल रहे हैं, उन सभी की चाल भी बदल गयी थी, घोड़ा तिरछा चल रहा था, हाथी और ऊंट आपस में स्थान बदल रहे थे, वज़ीर रेंग रहा था, बादशाह ने प्यादे का मुखौटा लगा लिया था और प्यादे अलग अलग वर्गों में बिखर रहे थे।

वह चिल्लाया, "तुम सब मेरे मोहरे हो, ये बिसात मैनें बिछाई है, तुम मेरे अनुसार ही चलोगे।" लेकिन सारे के सारे मोहरों ने उसकी आवाज़ को अनसुना कर दिया, उसने शतरंज को समेटने के लिये हाथ बढाया तो छू भी नहीं पाया।

वह हैरान था, इतने में शतरंज हवा में उड़ने लगा और उसके सिर के ऊपर चला गया, उसने ऊपर देखा तो शतरंज के पीछे की तरफ लिखा था - "चुनाव के परिणाम"।


- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

परमिन्दर शाह के लघुकथा संग्रह "अर्श" और गिरीश चावला के लघुकथा संग्रह "शमा" का लोकार्पण



आठ दिसम्बर 2018 को नई दिल्ली के हिंदी भवन में के.बी.एस. प्रकाशन द्वारा प्रकाशित लेखक श्री परमिन्दर शाह के लघुकथा संग्रह "अर्श" और लेखक श्री गिरीश चावला के लघुकथा संग्रह "शमा" के लोकार्पण, परिचर्चा, सम्मान समारोह एवं ग़ज़ल गायन का आयोजन अनेक सुधि साहित्यकारों, पत्रकारों और कलाकर्मियों की उपस्थिति में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री धीरेन्द शुक्ल  ने की, मुख्य अतिथि डॉ कमल किशोर गोयनका रहे और विशिष्ट अतिथि श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी,  श्री सुभाष चंदर , श्री आर.सी. वर्मा 'साहिल', श्री अमित टंडन , डॉक्टर आशीष कंधवे  श्री राजेश बब्बर  रहे।

कार्यक्रम का शुभारम्भ गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ व सरस्वती वंदना कुमारी नीतिका सिसोदिया ने मधुर वाणी में प्रस्तुत किया। इसके पश्चात केबीएस प्रकाशन परिवार की ओर से सभी अतिथियों का स्वागत किया गया, साथ ही इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ग्लोबल बुक ऑफ रिकॉर्ड से सम्मानित ट्रू मीडिया का के.बी.एस. प्रकाशन द्वारा सम्मान किया गया । इसके पश्चात श्री परमिन्दर शाह  एवं श्री गिरीश चावला  के लघुकथा–संग्रह "अर्श" व "शमा" का लोकार्पण, समारोह के अतिथियों के करकमलों से संपन्न हुआ। लोकार्पण के उपरांत के.बी.एस. प्रकाशन ने दोनों लेखकों का सम्मान किया।

समारोह के दौरान पुस्तक पर चर्चा में भाग लेते हुए सभी अतिथियों ने उपर्युक्त संग्रहों की खूबियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये दोनों संग्रह बहुत ही महत्वपूर्ण रूप से सामाजिक जीवन का लेखा जोखा प्रस्तुत करते है। उन्होंने लघुकथा के महत्त्व को बताते हुए संग्रहों के हर पक्ष को उजागर किया। साथ ही लेखकों को साहित्य जगत में पदार्पण के लिए बधाई दी और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया। लेखक श्री परमिन्दर शाह  एवं श्री गिरीश चावला  ने अपनी पुस्तक के कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर अपने अनुभव सबसे साझा किये और अपनी रचना यात्रा के सूत्र खोले।

के.बी.एस. प्रकाशन के प्रकाशक श्री संजय शाफ़ी  ने लेखक को बधाई दी और प्रकाशन की ओर से निःस्वार्थ भाव से सामाजिक कार्य कर रहे देश के अलग-अलग राज्य से आये विभूतियों को सम्मानित किया गया।

सभी अतिथियों के आशीर्वाद के पश्चात समारोह अध्यक्ष श्री धीरेन्द शुक्ल  ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आयोजन की सराहना करते हुए सभी सम्मानित साहित्यकारों और कलाकर्मियों को अपनी शुभकामनायें दीं और लेखकों का साहित्य जगत में स्वागत किया साथ ही लेखकों को निरंतर साहित्य साधना में रत रहते हुए देश और समाज के हित में रचना कर्म करते रहने को प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इन संग्रहों की सभी लघुकथायें जीवंत हैं। उन्होंने सभी साहित्य प्रेमी, श्रोताओं को भी आयोजन का हिस्सा बनकर उसे सफल बनाने के लिए बधाई दी।  श्रीमती भावना शर्मा  ने कार्यक्रम का सुगठित एवं बेहतरीन संचालन कर समा बांधा । लेखक श्री परमिन्दर शाह  की ग़ज़लों का गायन मशहूर ग़ज़लकार जनाब रमेश चंद निश्चल ने किया।

Source:
https://www.youtube.com/watch?v=XF3J1vYe2WI

सोमवार, 10 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

मासिक काव्य गोष्ठी में मधु गोयल के लघुकथा संग्रह थरथराती बूंद का विमोचन 
Dainik Jagaran |  10 Dec 2018 

कैथल/10 Dec 2018: साहित्य सभा की मासिक काव्य गोष्ठी साहित्यकार हरिकृष्ण द्विवेदी की अध्यक्षता में आरकेएसडी कॉलेज में हुई। संचालन रिसाल जांगड़ा ने किया। गोष्ठी शुरू करने से पहले साहित्यकार डॉ. ते¨जद्र के शोध प्रबंध ¨हदी गजल एवं अन्य काव्य विधाएं, प्रो. अमृत लाल मदान के उपन्यास एक और त्रासदी व मधु गोयल के लघुकथा संग्रह थरथराती बूंद का विमोचन किया गया। इसके साथ-साथ महेंद्र पाल सारस्वत की भजनोपदेश माला, सदाबहार श्रीमद भागवत गीता व हरीश झंडई के काव्य संग्रह ढलते सूरज की किरणें का भी विमोचन किया गया। इसके बाद गोष्ठी शुरू करते हुए र¨वद्र रवि ने कहा कि फैंक दो दरिया के बीचों बीच मुझको, मैं अपने बाजू आजमाना चाहता हूं। सतपाल शर्मा शास्त्री ने कहा कि आप्पे जे ना सुधरैगा तू, जीवन व्यर्थ गुजारैगा तू। रामफल गौड़ ने कहा कि के औकात बता माणस की, पत्थर न भी होसै घिसणा। इसके अलावा कमलेश शर्मा, डॉ. प्रद्युम्न भल्ला, रिसाल जांगड़ा, शमशेर ¨सह कैंदल, सतबीर जागलान, उषा गर्ग व चंद्रकांता ने विचार प्रस्तुत किए।

News Source:
https://www.jagran.com/haryana/kaithal-release-of-literary-works-done-at-monthly-poetry-symposium-18732724.html

रविवार, 9 दिसंबर 2018

राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता (स्टोरीमिरर और लघुकथा के परिंदे फेसबुक समूह द्वारा आयोजित)

स्टोरीमिरर और लघुकथा के परिंदे  फेसबुक मंच के सौजन्य से एक लघुकथा प्रतियोगिता राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की गई है।


प्रतियोगिता में सहभागिता निम्न URL पर क्लिक करके की जा सकती है:
https://contest.storymirror.com/hindi-competitions/ongoing/lghukthaa-ke-prinde/1a284713-a5d9-4851-b95f-c2c673e46866/introduction

ज्ञात हो कि इसमें सहभागिता करने वाले लघुकथाकार सिर्फ 'लघुकथा के परिंदे' फेसबुक समूह के सदस्य‌ होंगे।

किसी भी विषय पर आपकी अप्रकाशित लघुकथा आमंत्रित की जाती है।

व्यक्ति के अन्दर निहित चिन्तक-प्रवृत्ति का प्रतिफल है लघुकथा, लघुकथा बंद कली की तरह हो ना कि खिले हुए पुष्प की तरह -कान्ता रॉय


Rewards
उल्लेखनीय स्थान प्राप्त करने वाली 50 लघु कथाओं का ई-बुक बनाने के साथ-साथ सभी को डिजिटल सर्टिफिकेट प्रदान किया जाएगा।



Rules 
1. रचना स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित हो। किसी भी दशा में यदि किसी की भी रचना कहीं से भी कापी की हुई पाई गई तो वह कानूनी रूप से खुद जिम्मेदार होगा।

2. यदि यह सच्चाई पता चलती है कि रचना पहले से ही कहीं और जगह पर प्रकाशित हुई है तो आप को रिजेक्ट कर दिया जाएगा।

3. रचना में किसी भी प्रकार की अश्लीलता नहीं होनी चाहिए।

4. प्रतियोगिता में कोई भी भाग ले सकता है।

5. प्रतियोगिता में अपनी रचनाओं को 9 दिसंबर 2018 से लेकर 9 जनवरी 2019 तक सबमिट कर सकते हैं।

6. 10 फरवरी 2019 को इसका परिणाम https://www.storymirror.com पर प्रकाशित किया जाएगा।

7. सबसे ज्यादा पढ़ी गयी रचनाओं को भी विशेष तौर पर उल्लेखनीय स्थान देने के लिये चुना ज़ायेगा।

8. ध्यान रहे:यह आपकी अपनी प्रतिभा को परखने हेतु लॉन्च किया जा रहा है तो प्राथमिकता नवीनता को दी जायगी।

9. इस लघुकथा के परिंदे की प्रतियोगिता में आदरणीया कांता राय जी निर्णायक की भूमिका में हैं, उनका ही फैसला सर्वमान्य होगा|


Languages: Hindi
Content type: Story
Contact person: sant@storymirror.com

Source:
https://contest.storymirror.com/hindi-competitions/ongoing/lghukthaa-ke-prinde/1a284713-a5d9-4851-b95f-c2c673e46866/introduction

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

लघुकथा समाचार

लघुकथा के लिए उज्जैन की वाणी दवे व इंदौर के प्रतापसिंह सोढी कर्मभूमि सम्मान से सम्मानित 
Dainik Bhaskar | Dec 07, 2018 | उज्जैन 

मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल के अंतर्गत आने वाले प्रेमचंद सृजन पीठ उज्जैन की ओर से शनिवार 08-दिसंबर-2018 को कर्मभूमि सम्मान समारोह आयोजित किया जाएगा। जिसमें उज्जैन आैर इंदौर के 8 रचनाकारों को कर्मभूमि सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। 

प्रेमचंद सृजन पीठ के निदेशक जीवन सिंह ठाकुर ने बताया व्यंग के लिए उज्जैन के डॉ. पिलकेंद्र अरोरा व डॉ. हरीश कुमार सिंह, लघुकथा के लिए उज्जैन की वाणी दवे व इंदौर के प्रतापसिंह सोढी, कविता के लिए हेमंत देवलेकर व ब्रजकिशोर शर्मा एवं कहानी के लिए इंदौर के डॉ. किसलय पंचौली व ज्योति जैन को कर्मभूमि सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। कालिदास अकादमी में शनिवार 08-दिसंबर-2018 को प्रातः 11:30 बजे से कार्यक्रम प्रारम्भ होगा।

News Source:
https://www.bhaskar.com/mp/ujjain/news/8-artisans-of-ujjain-indore-will-be-honored-tomorrow-by-karmabhoomi-051656-3365259.html

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की ' की समीक्षा कांति शुक्ला 'उर्मि ' द्वारा

लघुकथा सँग्रह - '.....एक लोहार की '
लेखक - घनश्याम मैथिली 'अमृत'
मूल्य - 300 /-रुपये
पृष्ठ - 102
प्रकाशक - अपना प्रकाशन, भोपाल 462023 (मध्यप्रदेश )
समीक्षक - कांति शुक्ला 'उर्मि ' 
एम.आई.जी .35 बी -सेक्टर अयोध्या नगर भोपाल 462041 मोबाइल 99930 40726

संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश देती लघुकथाएं 

साहित्य में मानव जीवन के समस्त पहलुओं की विवृत्ति होती है और यही संबंध
सूत्र परिस्थितियों को जोड़ कर रखता है | साहित्य किसी भी विधा के रूप में हो हमारे जीवन की आलोचना करता है हमारा जीवन स्वाभाविक एवं स्वतंत्र होकर इसी के माध्यम से संस्कार ग्रहण करता हुआ अपनी मूकता को भाषा प्राप्त करता है भावनिष्ठ वस्तुनिष्ठ व्यक्तिक भावनाओं को नैतिक रूप देकर अंतर के अनुभूत सत्य को सूक्ष्म पर्यवेक्षण द्वारा प्रकट कर स्थायित्व प्रदान करता है।

साहित्य में गद्य की अन्य विधाओं यथा कहानी उपन्यास , लेख ,आदि के अतिरिक्त लघुकथा लेखन भी एक सशक्त विधा के रूप में भली-भांति स्थापित हो चुकी है और आज लघुकथाओं की लोकप्रियता शिखर पर है समय अभाव के चलते कम समय में सार्थक संदेश देती लघुकथाओं के असंख्य पाठकों की गहन रुचि के कारण लघुकथा की विधा साहित्य में आज अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज किए हैं लघुकथा से आशय मात्र इसके लघु कलेवर से नहीं वरन लघु में विराट के यथार्थ और कल्पना बोध को आत्मसात कर क्षण विशेष की सशक्त अभिव्यक्ति का प्रभावोत्पादक प्रखर प्रस्तुतीकरण है,जिसमें शिल्पगत वैविध्य है,प्रयोगधर्मी स्वरूप है, कथ्य और प्रसंगों की उत्कटता का सहज और प्रभावी संप्रेषण है विषय वस्तु का विस्तार ना करते हुए संक्षिप्त परिदृश्य में सार्थक संदेश व्याख्यायित करने का कठिन दायित्व है ।

आज आवश्यकता और अस्तित्व से जुड़ी इन लोकप्रिय लघुकथाओं के मनीषी कथाकार अपनी संपूर्ण प्रतिभा से आलोक विकिरण करते हुए सक्रिय हैं।

इन विद्वान लघुकथाकारों ने अमिधा की शक्ति को पहचाना है । व्यंजना और लक्षणा से नवीन आख्यान निर्मित किये हैं और लिखी जा रही लघुकथाएं जनसम्बद्धता ,प्रतिबद्धता, और पक्षधरता की कसौटी पर खरी उतर रही हैं ।अपने प्रभावी गतिशील कथ्य और सौंदर्य बोध द्वारा विशेष सराही जा रही हैं जिनके लेखकों की अपनी- अपनी शैलीगत विशेषताएं हैं इसी कड़ी में बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कवि समीक्षक, कथाकार श्री घनश्याम मैथिल 'अमृत 'का लघु कथा संग्रह'.... एक लोहार की 'का प्रकाशन हर्ष का विषय है उक्त कथा संग्रह में विविध वर्णी लघुकथाएं संग्रहीत हैं यह लघुकथाएं समाज की बिडंवनाओं का दर्पण है ।कथ्य ,भाव बोध ,विचार और दृष्टि मनुष्य और उसकी व्यवस्था की सार्वभौमिक सच्चाई को प्रकट करती उसकी हर योजना भाव संवेदना आचरण ,व्यवहार ,चरित्र भ्रष्टाचार, संवेदनहीनता और सामाजिक यथार्थ की पृष्ठभूमि में मानव प्रकृति आर्थिक उपलब्धि अभाव विचलन और विस्मय के बहुमुखी यथार्थ को अनेक स्तर पर व्यक्त कर रही हैं ।इन लघुकथाओं के आइडियाज आसपास के परिवेश अनुसार लिए गए हैं जिनमें सामाजिक संवेदना चेतना और जागरूकता है लघुकथा कागजी घोड़े सरकारी विभागों की तथाकथित सच्चाई बयान करती है तो जिंदगी की शुरुआत पुलिस की हठधर्मी और संवेदनहीनता को व्यक्त करती है ।अपना और पराया दर्द में मनुष्य की कथनी और करनी का अंतर स्पष्टतया परिलक्षित होता है तो विकलांग कौन अदम्य साहस और जिजीविषा की सशक्त कथा है ।संग्रह की अधिकांश कथाएं भ्रष्टाचार स्वार्थपरता ,सामाजिक पारिवारिक विसंगतियों और विकृतियों को केंद्र में लेकर रची गई हैं ।क्योंकि कथाकार देश और समाज के प्रति प्रतिबद्ध है पक्षधर है सहज और अवसरानुकूल कथा के पात्रों द्वारा कहे संवाद शीघ्र विस्मृत नहीं होते ,अर्थपूर्ण कथाओं में अनुभव और यथार्थ की अभिव्यक्ति के विशेष क्षण पाठकों को बांधने की क्षमता रखते हैं कथाओं के निर्दोष ब्योरे सरलता और सहजता से सामने आते हैं और सोचने को बाध्य करते हैं ,यह बहुआयामी विमर्श के परिदृश्य अपने मन्तव्य को रोचक और प्रभावी ढंग से स्पष्ट कर देते हैं । सँग्रह की सभी कथाएं प्रवाहमान और संप्रेषनीय हैं ,जिनकी अंतर्वस्तु और संरचना में कुछ अनछुए प्रसंग है कथाओं में व्यंजित कलापूर्ण लेखन कौशल में यथार्थ और समय की अनुगूंज है जो लघुकथा के कथ्य, शिल्पगत सौंदर्य -बोध को जीवंत करने में समर्थ हैं ।

समग्रतः भाव, विचार ,सार्थक वस्तुस्थिति और तत्क्षण बोधगम्यता से प्रभासित ये लघुकथाएं पाठकों को निश्चित रूप से प्रभावित करेंगी और सुधी पाठकों को मानवीय मूल्यवत्ता की प्रवाहिनी बनकर, इस स्वार्थ संकुल और स्व केंद्रित हो रहे संसार में मानवीय विस्तार करेंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। इसी गहन आश्वस्ति के साथ मैँ अपने हृदय की समस्त मंगलकामनाएं अर्पित करते हुए श्री घनश्याम मैथिल "अमृत" के सुखी स्वस्थ और यशस्वी जीवन की कामना करती हूं । 
इति शुभम


गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

लघुकथा वीडियो

लघुकथा पर व्याख्यान

प्रो. वी. के. अग्रवाल, पूर्व प्रोफेसर, आत्माराम सनातन धर्म कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय 




सन्दीप तोमर (लेखक एवं समीक्षक) द्वारा फेसबुक पर की गयी एक पोस्ट

संदीप तोमर एक अच्छे लेखक ही नहीं बल्कि बढ़िया समीक्षक भी हैं।  आप द्वारा समय-समय पर  लघुकथाकारों को  टिप्स भी दी जाती है। उनकी एक पोस्ट, जो उन्होंने फेसबुक पर शेयर की थी, लघुकथा विधा में अच्छे लेखन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। पोस्ट निम्न है:-

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

लघुकथा कलश द्वितीय महाविशेषांक की डॉ. पुरुषोत्तम दुबे जी द्वारा समीक्षा

लघुकथा कलश द्वितीय महाविशेषांक :

सौ में से सौ प्राप्तांक ।

' लघुकथा कलश 'द्वितीय महाविशेषांक (जुलाई-दिसंबर 2018 )हिंदी लघुकथा संसार में लघुकथाओं की अनोखी , अछूती और बेमिसाल उपलब्धि की एक अकूत धरोहर लेकर सामने आया है। प्रस्तुत अंक की बेहतरी
लघुकथा के क्षेत्र में अद्यतन उपलब्ध उन तमाम अंकों से शर्त्तिया शर्त्त जितने वाले दावों की मानिंद है जिनका लघुकथाओं के स्थापन्न में महती योगदान गिनाया जाता रहा है।

प्रस्तुत अंक के संपादक योगराज प्रभाकर इस कारण से एक अलहदा किस्म के संपादक करार दिए जा सकते हैं गो कि एक संपादक के नाते उनकी निश्चयात्मक शक्ति न तो किसी असमंजस से बाधित है और न ही उदारता का कोई चोला पहिन कर रचना के मापदंड को दरकिनार कर समझौतापरस्त होकर मूल्यहीन रचनाओं को प्रकाशित करने में उतावलापन दिखाती है।
निष्कर्ष रूप में यह बात फ़क़त 'विशेषांक' के मय कव्हर 364 पेजों पर हाथ फेर कर कोरी हवाईतौर पर नहीं कही गई हैं, प्रत्युत इस बात को शिद्दत के साथ कहने में विशेषांक में समाहित सम्पूर्ण सामग्री से आँखें चार कर के कही गई है। मौजूदा विशेषांक पर ताबड़तोड़ अर्थ में कुछ कहना होता , तो यक़ीनन कब का कह चुका होता। क्योंकि मुझको अंक मिले काफी अरसा बीत चुका है। अंक प्राप्ति के पहले दिन से लेकर अभी-अभी यानी समझिए कल ही अंक को पढ़कर पूर्ण किया है और आज अंक पर लिखने को हुआ हूँ। इसलिए अंक को पचाकर , अंक पर अपनी कैफ़ियत उगल रहा हूँ।

वैसे तो कई-एक लघुकथाकार , जिनको यह अंक प्राप्त हुआ है या जिनकी लघुकथा इस अंक में छपी है , अंक पर उनके त्वरित विचार गाहेबगाहे पढ़ने को मिले भी हैं , लेकिन अपनी बात लिखने में इस बात को लेकर चौकस हूँ कि जो भी अंक पर कहने जा रहा हूँ, वह अंक पर पढ़ी अन्यान्यों की टिप्पणी से सर्वदा अलहदा ही होगी। प्रस्तुत अंक पर किसी के लिखे आयातीत विचारों का लबादा ओढ़कर यहाँ अपनी बात रखना कतई नहीं चाहूँगा, चाहे फिर अंक पर अपना विचार-मत संक्षिप्त ही क्यों न रखूँ ?

श्री योगराज प्रभाकर एक अच्छे ग़ज़लगो हैं और अपनी इसी प्रवृत्ति का दोहन वे प्रस्तुत अंक के संपादकीय की शुरुआत 'अर्ज़ किया है ' के अंदाज़ में मशहूर शायर जनाब जिगर मुरादाबादी के कहे ' शेर ' से करते हैं ; " ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे। एक आग का दरिया है और डूब के जाना है।" वाक़ई योगराज sir आप इस अंक को सजाने,संवारने, निखारने और हमारे बीच लाने में बड़े जटिल पथों से गुजरे हैं, इसकी गवाही खुद आपके संपादकत्व में निकला यह अंक भी दे रहा है और हम भी । यह अंक नहीं था आसां तैयार करने में। कर दिया आपने हम गवाह बने हैं। अपने संपादकीय में अंक के संवर्द्धन में एक बड़ी बेलाग बात संपादक योगराज जी ने कही है , " बिना किसी भेदभाव के सबको साथ लेकर चलने की पूर्व घोषित नीति का अक्षरशः पालन करने का प्रयास इस अंक में भी किया गया है। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि ' सबको साथ लेकर ' चलने की अवधारणा तब पराभूत हो जाती है जब अगड़े -पिछडे तर्ज़ पर रचनाकारों का वर्गीकरण कर दिया जाता है। अतः लघुकथा कलश के प्रवेशांक से ही हमने ऐसी रूढ़ियाँऔर वर्जनाएँ तोडना प्रारम्भ कर दिया था । " यह वक्तव्य सूचित करता है कि संपादक लघुकथा के प्रति आग्रही तो है मगर लघुकथा की शर्तों पर लिखी लघुकथाओं के प्रति।

प्रस्तुत अंक में पठनीय संपादकीय के बावजूद सामयिक लघुकथाकारों की लघुकथाओं पर दृष्टिसम्पन्न आलोचकों के गंभीर विचारों के अलावा लघुकथा के तमामं आयामों,उसका वुजूद,उसका सफरनामा,उसकी बनावट-बुनावट पर लघुकथा के विशिष्ट जानकारों के आलेखों का प्रकाशन , अंक को पायदार बनाने में महत्वपूर्ण है। प्रो बी एल आच्छा, डॉ उमेश मनदोषी, रवि प्रभाकर द्वारा लघुकथाओं की सटीक आलोचना के बरअक्स

डॉ अशोक भाटिया,भगीरथ परिहार,माधव नागदा,मधुदीप,डॉ मिथिलेश दीक्षित, रामेश्वर काम्बोज, डॉ रामकुमार घोटड, डॉ सतीशराज पुष्करणा,पुष्पा जमुआर, डॉ शकुन्तला किरण, डॉ शिखा कौशिक नूतन और अंत में प्रस्तुत अंक पर अंक की परिचयात्मक टिप्पणी के प्रस्तोता नाचीज़ डॉ पुरुषोत्तम दुबे के आलेखों का प्रकाशन हिंदी लघुकथा की समीचीनता के पक्ष में उपयोगी हैं।

लघुकथा पर मुकेश शर्मा द्वारा डॉ इन्दु बाली से तथा डॉ लता अग्रवाल द्वारा शमीम शर्मा से लिये गए साक्षात्कार लघुकथा की दशा,दिशा और संभावनाओं पर केंद्रित होकर लघुकथा में शैली और शिल्प पर भी प्रकाश डालता है। 

इस अंक की खास-उल-खास विशेषता यह है कि अंक में 'शृद्धाञ्जली 'शीर्षक के अधीन उन सभी स्वर्गीय नामचीन लघुकथाकारों की लघुकथाओं का प्रकाशन भी किया गया मिलता है ; जो अपने समय में लघुकथा-जगत में सृजनकर्मी होकर लघुकथा के क्षेत्र के चिरपुरोधा बने हुए हैं। 

अंक में आगे हिन्दी में लघुकथा लिखने वाले 245 लघुकथाकारों का जमावड़ा और आगे के क्रम में बांग्ला, मराठी,निमाड़ी,पंजाबी तथा उर्दू के लघुकथाकारों की लघुकथाएं अपने अलग जज़्बे के साथ पठनीय हैं । 

फिर सामने आता है लघुकथा केंद्रित पुस्तकों की समीक्षा का दौर , तदुपरांत देश के विभिन्न प्रान्तों में आयोजित हुई लघुकथा पर गतिविधियों की रिपोर्ट का प्रकाशन , जो अंक को सम्पूर्ण बनाने में अतिरेक रूप में ज़रूरी -सा दृष्टिगोचर होता है|

बधाई , योगराज प्रभाकर जी ,देश भर के विभिन्न भाषा-भाषी लघुकथाकारों की लघुकथाओं को एक जिल्द में समेटने के सन्दर्भ में। इस बात से सबसे ज़्यादा भला उन लघुकथाकारों को होगा , जो अपनी लघुकथाओं की पृष्ठभूमि में अन्यान्य प्रान्तों के कथानकों को तरज़ीह देना चाहते हैं ,ऐसे लघुकथाकार इस अंक के माध्यम से मराठी, बांग्ला, उर्दू , पंजाबी, निमाड़ी आदि की लघुकथाओं के ' लेखन-प्रचलन ' को नज़दीक से समझकर अपनी लघुकथाओं के कथानकों सृजन में भिन्न-भिन्न भाषाओं की शब्द-सम्पदा गृहीत कर सकते हैं और जिसकी वजह से वे अपनी लघुकथाओं के कथानक की प्रस्तुति मेंअपने वर्णित कथानक को भाषा और विचार की दृष्टि से भारतीय राष्ट्रीयता का रंग दे सकते हैं।

- डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
सम्पर्क : 93295 81414
94071 86940

रचनाकार.ऑर्ग लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन वर्ष 2019

रचनाकार.ऑर्ग लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन वर्ष 2019 की घोषणा की  गयी है। 
अंतिम तिथि - 31 जनवरी 2019

इस आयोजन का उद्देश्य नव-सृजन को पुष्पित-पल्लवित करना मात्र है.

संपादक / निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित रचनाओं के लिये कुल रु. 21 हजार के निम्न कुल 10 (दस) पुरस्कार निर्धारित किए गए हैं, जो कुछ विशेष परिस्थितियों में बदले जा सकते हैं।

· प्रथम पुरस्कार (एक): 1x5000 रुपए (पांच हजार रुपए)
· द्वितीय पुरस्कार (दो): 2x3000 रुपए (तीन हजार रूपए प्रत्येक)
· तृतीय पुरस्कार(तीन): 3x2000 रुपए  (दो हजार रूपए प्रत्येक)
. विशेष पुरस्कार (चार): 4x1000 रुपए (एक हजार रुपए प्रत्येक)
कुल 21,000 (इक्कीस हजार) रुपए नकद तथा साथ में विविधपुस्तकें पुरस्कार स्वरूप  प्रदान किए जाएंगे. पुरस्कारों में वृद्धि संभावित है, चूंकि इस आयोजन हेतु चहुँ ओर से प्रायोजन आमंत्रित हैं.

इस आयोजन में भाग लेने के लिए रचनाकार में रचनाएँ भेजने के नियम (कृपया इस लिंक को देखें व सूक्ष्मता से अध्ययन करें - http://www.rachanakar.org/2005/09/blog-post_28.html ) यथावत लागू होंगे, इसके अतिरिक्त, ये नियम भी लागू होंगे –

1- इस आयोजन के लिए भेजी जाने वाली लघुकथाएँ पूर्णतः मौलिक, सर्वथा अप्रकाशित तथा अप्रसारित होनी चाहिए।  रचना कहीं भी, प्रिंट माध्यम हो या ऑनलाइन, पूर्व प्रकाशित न हो।  ब्लॉग, फ़ेसबुक या वाट्सएप्प या अन्यत्र, कहीं भी, डिजिटल-प्रिंट माध्यम में पूर्व-प्रकाशित न हो।  बेहतर हो कि इस आयोजन के लिए आप कुछ नया, नायाब सा लिखें।  आयोजन का उद्देश्य ही है नव-सृजन को प्रोत्साहित करना।  रचनाकार.ऑर्ग में प्रकाशित होने के उपरांत रचनाओं को रचनाकार का लिंक देते हुए अन्यत्र प्रकाशित/साझा किया जा सकता है। प्रत्येक रचना के साथ नीचे दिया गया रचना की मौलिकता व अप्रकाशित अप्रसारित होने का प्रमाणपत्र साथ लगाना आवश्यक है.

2 - इस आयोजन में भाग लेने के लिए रचनाएँ भेजने के साथ ही आप रचनाकार लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 के नियमों से स्वयंमेव आबद्ध हो जाते हैं। 

3 - निर्णायकों का निर्णय अंतिम व सभी पार्टियों के लिए मान्य व बाध्यकारी होगा।

4 – रचना किसी भी फ़ॉन्ट में, टैक्स्ट, वर्ड या पेजमेकर आदि फ़ाइल के रूप में भेजी जा सकेंगी, परंतु चित्र/पीडीएफ फ़ाइल के रूप में प्राप्त, अन्य स्वरूपों में लिखी, स्क्रीनशॉट, ऑडियो, लिंक, आदि के रूप में भेजी गई रचनाओं पर विचार नहीं किया जाएगा व ऐसी प्रविष्टियाँ स्वतः अयोग्य मानी जावेंगी।

5 – रचनाकार में इस आयोजन के लिए एक लेखक के द्वारा, एकाधिक बार में, एक से अधिक, परंतु अधिकतम 5 लघुकथाएँ प्रकाशनार्थ भेजी जा सकती हैं, परंतु शब्द सीमा का ध्यान रखें, और लघुकथाएँ 500 शब्दों से अधिक नहीं हों तो बेहतर।  परंतु एक लेखक को सिर्फ एक ही पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. किसी भी रचना को बिना कोई कारण बताए स्वीकृत-अस्वीकृत करने का सर्वाधिकार निर्णायक मंडल व संपादक मंडल के पास होगा व सभी पक्षों को मान्य व बाध्यकारी होगा. एक पुरस्कृत लघुकथा में किन तत्वों का समावेश होता है यह जानने के लिए लघुकथा.कॉम पर प्रकाशित इन आलेखों [ 1 रचनात्मकता की उष्मा से अनुस्यूत पुरस्कृत लघुकथाएँ , 2 लघुकथा की विधागत शास्त्रीयता और पुरस्कृत लघुकथाएँ, 3 लघुकथा में शिल्प की भूमिका ] का अध्ययन मनन करें व तदनुसार ही अपनी लघुकथाओं का सृजन करें व प्रतियोगिता हेतु प्रेषित करें. वर्तनी की जांच कर वर्तनी त्रुटि रहित रचनाएँ ही भेजें, अत्यधिक वर्तनी त्रुटि युक्त रचनाएँ स्वतः अयोग्य मानी जावेंगी.

6 – रचनाएँ भारतीय समयानुसार अंतिम तिथि - 31 जनवरी 2019 तक प्रेषित की जा सकती हैं. रचनाएँ प्राप्त होने के उपरांत उन्हें समय समय पर, यथासंभव शीघ्रातिशीघ्र रचनाकार.ऑर्ग पर प्रकाशित किया जाता रहेगा. अंतिम तिथि के बाद मिली प्रविष्टियाँ स्वतः अयोग्य मानी जायेंगी।

7 – परिणामों की घोषणा मार्च 2019 के प्रथम सप्ताह में की जाएगी. अपरिहार्य कारणों से परिणाम घोषणा की तिथि में बदलाव संभव है।

8 – समय समय पर इन नियमों में परिवर्तन किए जा सकते हैं जो कि सभी पक्षों के लिए मान्य व बाध्यकारी होंगे. अद्यतन नियमों, नई सूचनाओं या अपडेट के लिए रचनाकार के पृष्ठ (http://www.rachanakar.org/2018/10/2019.html) को नियमित अंतराल पर देखते रहें।

9 - इस आयोजन हेतु प्राप्त रचनाओं के प्रकाशन के एवज में किसी तरह का पारिश्रमिक देय नहीं है।  कुछ पुरस्कृत, विशिष्ट व चुनिंदा रचनाओं को अन्यत्र प्रिंट की पत्रिकाओं में भी प्रकाशित किया जा सकेगा, जिसके एवज में किसी भी तरह के पारिश्रमिक भुगतान का प्रावधान नहीं है।  ध्येय है नव सृजन व पठन-पाठन को प्रोत्साहित करना।


रचनाकार में समय समय पर अन्य तमाम लेखकों की लघुकथाएँ पूर्व की तरह प्रकाशित होती रहेंगी, मगर पुरस्कार चयन में सिर्फ वही लघुकथाएँ शामिल मानी जाएंगी जिन्हें विशेष रूप से इस आयोजन के लिए स्पष्टतः भेजा जाएगा और उसमें नीचे दिया गया घोषणा पत्र आवश्यक रूप से शामिल किया गया होगा -

प्रमाणपत्र
प्रमाणित किया जाता है कि संलग्न लघुकथा जिसका शीर्षक ....... है, मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित है, तथा इसे रचनाकार.ऑर्ग ( http://rachanakar.org ) में लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन 2019 में सम्मिलित करने हेतु प्रेषित किया जा रहा है. मुझे रचनाकार.ऑर्ग की तमाम शर्तें, उनके निर्णय समेत, मान्य होंगी.

ऊपर अंकित प्रमाण पत्र को रचना भेजते समय रचना में अथवा ईमेल में शामिल करना आवश्यक है.

रविवार, 2 दिसंबर 2018

लघुकथा प्रतियोगिता - हिन्दी चेतना

हिन्दी चेतना द्वारा लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।  इसमें अप्रकाशित और अप्रसारित (ब्लॉग/ वेब/ वाट्स एप / फेसबुक आदि पर भी प्रसारित न हों) अधिकतम दो लघुकथाएँ (एक ही फाइल में)
10 दिसम्बर 2018 तक आमंत्रित हैं।


  • रचनाएँ  इस मेल पर भेजी जाएँ- shiamtripathi@gmail.com
  • ई मेल के विषय कॉलम में ‘लघुकथा- प्रतियोगिता’ लिखा होना चाहिए। 
  • दोनों लघुकथाएँ यूनिकोड (मंगल) या कृतिदेव में होनी चाहियें। 
  • लघुकथा में सबसे ऊपर अप्रकाशित और अप्रसारित की घोषणा के साथ पूरा नाम,डाक का पिनकोड सहित पूरा पता और ई मेल लिखा होना चाहिए।  परिचय या फोटो न भेजा जाए। 
  • भाषा की अशुद्धियों वाली रचना पर विचार नहीं किया जाएगा .पीडीफ या फोटो के रूप में कोई रचना स्वीकार नहीं की जाएगी. 

प्रथम पुरस्कार( कैनेडा की मुद्रा में ) 100 डॉलर , द्वितीय 50 डॉलर और तृतीय पुरस्कार 25 डॉलर होगा.

6.पुरस्कृत रचनाओं को हिन्दी चेतना के किसी  अंक में प्रकाशित किया जाएगा, जिसका कोई मानदेय नहीं दिया जाएगा .

श्याम त्रिपाठी-संरक्षक और मुख्य सम्पादक हिन्दी चेतना
http://hindichetna.com/
एवं सम्पादक मंडल 

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-44 (विषय: परिणाम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन (openbooksonline.com) द्वारा हर माह के अंत में एक दो दिवसीय ऑनलाइन  लघुकथा गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। श्री योगराज प्रभाकर जी के सञ्चालन में देश में लघुकथा की यह प्रथम ऑनलाइन गोष्ठी ,पारस्परिक वार्तालाप से लघुकथा विधा को उन्नत बनाने का उत्तम प्रयास करते हुए, एक वर्कशॉप की तरह हो जाती है, जिसमें केवल विधा ही नहीं बल्कि पोस्ट की गयी लघुकथा के गुणों पर भी चर्चा की जाती है। 

43 सफल गोष्ठियों के पश्चात् पिछले माह नवम्बर 2018 की गोष्ठी को निम्न लिंक पर देखा जा सकता है:


(पूर्व की 43  ऑनलाइन गोष्ठियां भी http://openbooksonline.com पर उपलब्ध हैं)

अविराम साहित्यिकी का तीसरा लघुकथा विशेषांक : स्केन प्रति

श्री उमेश मदहोशी  ने डॉ. बलराम अग्रवाल जी के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक के सम्पूर्ण अंक को स्कैन कर प्रति फेसबुक पर शेयर की है।

इसे निम्न links पर पढ़ा जा सकता है:

पहली पोस्ट (आवरण 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025767640796039

दूसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 46 से पृष्ठ संख्या 79 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025780210794782


तीसरी पोस्ट (पृष्ठ संख्या 80 से 112 एवं आवरण 03 तक)
https://www.facebook.com/umesh.mahadoshi/posts/2025791147460355

तीसरी पोस्ट का टेक्स्ट निम्नानुसार है:-

//

Umesh Mahadoshi

आद. मित्रो,
अग्रज डॉ. बलराम अग्रवाल के अतिथि संपादन में आये अविराम साहित्यिकी के तीसरे लघुकथा विशेषांक में आपमें से अनेक मित्रों ने सहभागिता की, इसके लिए आप सबका धन्यवाद। सुधी पाठक के रूप में भी आप सबने उत्साह दिखाया, हमारा मनोबल बढ़ाया, यह हमारा सौभाग्य है। लेकिन आपमें से अनेक मित्रों की शिकायत है कि उक्त अंक आपको प्राप्त नहीं हुआ है, मैं सभी शिकायतकर्ता मित्रों से निवेदन करता चला गया कि 02-03 दिसम्बर तक प्रतीक्षा कर लीजिए, न मिलने पर पुनः प्रति भेज दी जायेगी। इस निवेदन और वादा करने की प्रक्रिया में सूची लगातार लम्बी होती जा रही है। मेरे पास पुनःप्रेषण के लिए बामुश्किल 20-22 प्रतियाँ बची हैं। धर्मसंकट यह है कि कितने मित्रों से किए वादे पूरे किए जायें! दूसरी बात- दुबारा भेजने पर भी प्रति नहीं मिली तो...?
समाधान यह निकाला है कि पूरे अंक की स्केन प्रति फेसबुक पर डाल दी जाये। जिन मित्रों की लघुकथाएँ इस अंक में शामिल हैं, वे अपनी भी पढ़ सकते हैं और दूसरों की भी। सूची में संबन्धित रचनाकार की पृष्ठ संख्या देखकर उस पृष्ठ को डाउनलोड करके पड़ा जा सकता है। पोस्ट में अंक के पृष्ठों को अपलोड करने की सीमाओं को ध्यान मे रखते हुए आवरण-01 व 04 तथा पृष्ठ संख्या 01 से पृष्ठ संख्या 45 तक को पहली पोस्ट में, पृष्ठ संख्या 46 से 79 तक दूसरी पोस्ट में तथा पृष्ठ संख्या 80 से आवरण-03 तक को तीसरी पोस्ट में अपलोड किया जा रहा है। 
इस व्यवस्था के साथ बची हुई मुद्रित प्रतियाँ उन रचनाकार मित्रों के लिए सुरक्षित रखी जा रही हैं, जो फेसबुक/इण्टरनेट से नहीं जुड़े हैं। हमारी विवशता को समझते हुए आप सब इस व्यवस्था को स्वीकार करें और जिन मित्रों को मुद्रित प्रति नहीं मिल पाये, हमें क्षमा करें।
-उमेश महादोषी//


शनिवार, 1 दिसंबर 2018

झूठे मुखौटे (लघुकथा)

साथ-साथ खड़े दो लोगों ने आसपास किसी को न पाकर सालों बाद अपने मुखौटे उतारे। दोनों एक-दूसरे के 'दोस्त' थे। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया और सुख दुःख की बातें की।

फिर एक ने पूछा, "तुम्हारे मुखौटे का क्या हाल है?"

दूसरे ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया, "उसका तो मुझे नहीं पता, लेकिन तुम्हारे मुखौटे की हर रग और हर रंग को मैं बखूबी जानता हूँ।"

पहले ने चकित होते हुए कहा,"अच्छा! मैं भी खुदके मुखौटे से ज़्यादा तुम्हारे मुखौटे के हावभावों को अच्छी तरह समझता हूँ।"

दोनों हाथ मिला कर हंसने लगे।

इतने में उन्होंने देखा कि दूर से भीड़ आ रही है, दोनों ने अपने-अपने मुखौटे पहन लिये।

अब दोनों एक दूसरे के प्रबल विरोधी और शत्रु थे, अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता।

- डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी