रविवार, 15 अप्रैल 2018

छुआछूत (लघुकथा)


'अ' पहली बार अपने दोस्त 'ब' के घर गया, वहां देखकर उसने कहा,  "तुम्हारा घर कितना शानदार है - साफ और चमकदार"

"सरकार ने दिया है, पुरखों ने जितना अस्पृश्यता को सहा है, उसके मुकाबले में आरक्षण से मिली नौकरी कुछ भी नहीं है, आओ चाय पीते हैं"

चाय आयी, लेकिन लाने वाले को देखते ही 'ब' खड़ा हो गया, और दूर से चिल्लाया, "चाय वहीँ रखो...और चले जाओ...."

'अ' ने पूछा, "क्या हो गया?"

"अरे! यही घर का शौचालय साफ़ करता है और यही चाय ला रहा था!"

-- डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी